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समाचार कोड: 371230
10 अगस्त 2021 - 00:28
मौलाना रज़ी ज़ैदी

हौज़ा / शहीदों का ग़म और विशेष रूप से सैयदुश्शोहदा इमाम हुसैन (अ.स.) का ग़म कर्बाल के वाक़ेए को जिंदा ओ जावेद बनाने का ज़रिया है। इस ग़म से अज़ादारो और हक़ के पेशवाओ के दरमियान बातीनी बंधन क़ायम होता है और साथ ही लोगो मे ज़ुल्म ओ सितम से मुक़ाबले की रूह ज़िंदा होती है।

मौलाना रज़ी जै़दी फंदेडवी दिल्ली द्वारा लिखित

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी। 61 हिजरी मे इराक के कर्बला, नैनवा नामी सहरा मे हबीबे ख़ुदा, रहमतुल लिल्आलामीन हज़रत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व.व.) के नवासे इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके वफादार (72) साथियों की अज़ीम शहादत इस्लाम के इतिहास में एक अभूतपूर्व मारका है। जिसमे उन्होने राहे खुदा, इस्लाम, राहे हक़ ओ अदालत और जहालत, गुराही की ज़ंजीरो मे जकड़ी हुई इंसानियत को आज़ाद करने के लिए जामे शहादत नोश फ़रमाया। इसीलिए इमाम हुसैन (अ.स.) न केवल मुस्लमानो के दिलो मे मक़ाम ओ मंज़िलत रखते है बल्कि सभी मुस्लिम और गैर स्लिम आपको एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में पहचानते हैं। आपकी याद में मुहर्रम का चांद दिखाई देते ही अज़ादारी मनाने वाली बस्तियों में मातम का माहौल हो जाता है। हर तरफ से मातम, मातम और मजलिसो की आवाजें आने लगती हैं।

उपमहाद्वीप में कर्बला के शहीदों की अज़ादारी बहुत पुरानी है। इमाम हुसैन (अ.स.) की अज़ादारी मनाने का सिलसिला मुल्तान में शुरू हुआ जब वहा तीसरी सदी हिजरी के शुरूआत मे क़रामता इस्माईलीयो की सरकार बनी और यहां मिस्र  के फातेमी खलीफाओं का खुत्बा पढ़ा जाने लगा। इब्न ताज़ी के अनुसार, मिस्र और सीरिया में फातेमी शासन की स्थापना के बाद 366हिजरी / 978 ई. में , शहीदों की अज़ादारी शुरू हुई। महमूद गजनवी के आक्रमण और इस्माइली नेताओं के सूफियों में रूपांतरण के परिणामस्वरूप मुल्तान में इस्माईली सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद, मुहर्रम की १० वीं के दौरान सूफी दरगाहो और सुन्नी राजाओं के किलों मे अज़ादारी मनाई जाने लगी। दक्षिण भारत में यह परंपरा दक्कन के शिया राज्यों में अधिक संगठित थी और उपमहाद्वीप का पहला इमामबाड़ा (अशूरा खाना) भी वहीं स्थापित किया गया था।

इमाम हुसैन (अ.स.) के क़याम का उद्देश्य इस्लामी समाज के सामने आने वाले खतरों को दूर करना था। आत्मा की परिपक्वता और आध्यात्मिकता की ओर झुकाव कर्बला की महान संपत्ति है जो किसी और के पास नहीं है, इसलिए यह दुःख हमारी संस्कृति में इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके साथियों और अंसार की मजलिस और अज़ादारी में बहुत मूल्यवान है। आचरण ही इबादत है। क्योंकि अज़ादारी आध्यात्मिकता को बढ़ावा देती है और मनुष्य को मानवता के उच्चतम स्तर तक पहुंचने में मदद करती है। इमाम हुसैन (अ.स.) के लिए रोना और विलाप करना आंतरिक परिवर्तन का कारण है और इसके साथ ही मनुष्य की आध्यात्मिक पूर्णता भी है। यह मनुष्य में ईश्वर के प्रति पवित्रता और निकटता के लिए एक उदाहरण प्रदान करती है। उसी तरह मातम मनाने वाले भी दीन के साथ होते हैं जो आस्था की राह में मौत को खुशी और जुल्म करने वाले को लज्जा का कारण मानते हैं। इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत का ग़म वो ग़म है जिसने इंसान के वजूद को अंदर और बाहर से क्रान्तिकारी बना दिया है। लोग इससे जुड़े हुए नज़र आते हैं।

इस दु:ख का निर्माण मानवीय आधार पर किया गया है कि जहां धार्मिक, जातिगत और भाषाई संकीर्णता की अवधारणा नहीं बल्कि हर व्यक्ति के दिल की आवाज है, इसलिए दुनिया के महत्वपूर्ण क्रांतिकारी आंदोलनों में इसकी गूंज सुनाई देती है। ऐसे समय में जब भारत गुलामी की जंजीरों में था, महात्मा गांधी ने कहा था: "हुसैनी सिद्धांत का पालन करके मनुष्य को बचाया जा सकता है।" पंडित नेहरू कहते हैं, "इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत का एक सार्वभौमिक संदेश है।" "हीरोज उपासना" के लेखक कार्लाइल ने कहा कि "हुसैन की शहादत के मुद्दे पर जितना अधिक विचार किया जाएगा, उसकी उच्च मांगें उतनी ही अधिक सामने आएंगी।" डॉ राजेंद्र प्रसाद बेदी ने कहा कि इमाम हुसैन का बलिदान किसी एक राज्य या राष्ट्र के लिए सीमित नहीं है बल्कि यह मानव जाति की महान विरासत है। प्रसिद्ध बंगाली लेखक रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा: "सच्चाई और न्याय को जीवित रखने के लिए सैनिकों और हथियारों की आवश्यकता नहीं है। बलिदान करके विजय प्राप्त की जा सकती है, जैसे इमाम हुसैन ने कर्बला में बलिदान दिया।" इमाम हुसैन मानवता के नेता हैं । "

अज़ादारी का अर्थ है उत्पीड़ितों के साथ भावनाओं के बंधन को मजबूत करना जो एक महान क्रांति कर रहे हैं और उत्पीड़क के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। शहीदों के लिए रोना और अज़ादारी करना उनके साथ कर्बला के युद्ध के मैदान में भाग लेने के समान है। लक्ष्यों और उद्देश्यों की सुरक्षा के लिए शर्तें प्रदान की जाती हैं। शहीदों का दुःख और विशेष रूप से इमाम हुसैन (अ) का दुःख कर्बला की महान घटना को कायम रखने का एक साधन है।

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टिप्पणियाँ

  • mohmd altaf qadri IN 09:01 - 2021/08/10
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    assalamoalaikum jab se me ne is news a.j.n ko pardhna shoro kia he mujhe bohut ache logun ki tehrer pardhne ko milti he jis se bohut se sawalat ka jab mil jata he haowza news ko me mobarakbad deta hun ke aap ko me uor mujh jesy log pasand kar rahe hen